श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ || Shri Prannath Jyanpeeth
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श्री प्राणनाथ जी का प्रकटन

श्री प्राणनाथ जी का प्रकटन एक अनहोनी घटना है, जिसमें सच्चिदानन्द परब्रह्म का आवेश स्वरूप इस संसार में श्री प्राणनाथ जी के स्वरूप (श्री विजयाभिनन्द बुद्ध निष्कलंक स्वरूप, इमाम मुहम्मद महदी साहिब्बुजमां, या Second Christ) में प्रकट होकर तारतम वाणी के माध्यम से परमधाम एवं परब्रह्म की सम्पूर्ण पहचान दे रहा है, जो संसार के सभी मत-पन्थों को समान रूप से ग्राह्य है।

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श्री प्राणनाथ महिमा

यह सर्वमान्य तथ्य है कि तारतम वाणी परब्रह्म के आवेश से अवतरित हुर्इ है तथा उन्हीं के आदेश से श्री लालदास जी द्वारा श्री बीतक साहब की भी रचना की गयी है। ऐसी स्थिति में दोनों ग्रन्थों के कथनों का उल्लंघन श्री राज जी के आदेशों की अवहेलना है और ऐसा करना महान अपराध है।

यदि निष्पक्ष हृदय से श्रीमुखवाणी एवं बीतक साहब के ज्ञान सागर में गोता लगाकर अपनी अन्तरात्मा की आवाज सुनी जाये, तो यही निष्कर्ष निकलेगा कि श्री प्राणनाथ जी कोई सन्त, कवि, भक्त, मनीषी, या श्री देवचन्द्र जी के शिष्य नहीं हैं, बल्कि सच्चिदानन्द परब्रह्म ही श्री प्राणनाथ जी के स्वरूप में लीला कर रहे हैं। के स्वरूप में लीला कर रहे हैं।

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अब सो साहेब आइया

सच्चिदानन्द श्री प्राणनाथ जी की महिमा का शब्दों में वर्णन करना असम्भव कार्य है । जिस हकी सूरत श्री महामति जी के स्वरूप में पाँचों सर्वश्रेष्ठ शक्तियाँ विराजमान हैं, उनके स्वरूप की महिमा का गान करने के लिए यह जिह्वा तथा यह मनुष्य जीवन दोनों ही बहुत छोटे हैं । परम सत्य तो यह है कि श्री प्राणनाथ जी की शोभा, ज्ञान, प्रेम, कृपा, व शक्ति अतुलनीय हैं ।

सुनियो दुनिया आखिरी, भाग बड़े हैं तुम। जो कबूं कानों न सुनी, सो करो दीदार खसम।। (सनन्ध ३३/१)

हे आखिरी समय के लोगों ! तुम सब बहुत भाग्यशाली हो कि तुम्हें परब्रह्म स्वरूप श्री प्राणनाथ जी के दर्शन करने का अवसर प्रप्त हुआ है, जिनके बारे में आज तक कभी किसी ने सुना भी नहीं था।

एही अक्षरातीत हैं, एही हैं धनी धाम। एही महम्मद मेहंदी ईसा, एही पूरे मनोरथ काम।। (बीतक ६८/७२)

ये श्री प्राणनाथ जी ही धाम के धनी पूर्णब्रह्म सच्चिदानन्द अक्षरातीत हैं। इन्हें ही कतेब में आखरूल इमाम मुहम्मद महदी साहिबुज्जमाँ कहा गया है, जिनके अन्दर ईसा रूह अल्ला भी विराजमान हैं। यही सबकी इच्छाओं को पूर्ण करने वाले हैं।

इन सरूप की इन जुबां , कही न जाए सिफत । सब्दातीत के पार की , सो कहनी जुबां हद इत ।। (बीतक ६२/८)

श्री प्राणनाथ जी के स्वरूप की महिमा इन शब्दों में नहीं कही जा सकती है क्योंकि शब्द तो इस नश्वर संसार के हैं और जिसकी शोभा का वर्णन करना है वे तो शब्दातीत (शब्दों से परे श्री अक्षर ब्रह्म) से भी परे हैं । ऐसे अलौकिक अक्षरातीत स्वरूप इस धरती पर आये हुए हैं ।

इन मोती को मोल कहयो न जाए, ना किनहूं कानों सुनाए। सोई जले जो मोल करे, और सुनने वाला भी जल मरे।। (बड़ा कयामतनामा ८/५५)

आखिरी स्वरूप श्री प्राणनाथ जी की महिमा शब्दों में ना तो कही जा सकती, ना ही सुनी जा सकती है। जो व्यक्ति इनकी महिमा को शब्दों (नाम, आदि) में बांधने का प्रयास करेगा (अर्थात् इनकी महिमा कम करने का प्रयास करेगा), वह तो दोजख में जलेगा ही, उसकी बात सुनने वाले भी दोजख की अग्नि में जलेंगे।

विजिया अभिनंदन बुध जी, और निहकलंक अवतार। वेदों कहया आखिर जमाने, एही हैं सिरदार।। (सनन्ध ३६/४६)

वेदादि ग्रन्थों में कहा है कि आखिरी समय (अट्ठाइसवें कलियुग) में प्रकट होने वाले विजयाभिनन्द निष्कलंक स्वरूप श्री प्राणनाथ जी सभी के सिरदार (प्रमुख) हैं।

कोई दूजा मरद न कहावहीं, एक मेंहेदी पाक पूरन। खेलसी रास मिल जागनी, छत्तीस हजार सैयन।। (सनन्ध ४२/१६)

एक पवित्र, पूर्ण, सच्चिदानन्द स्वरूप श्री प्राणनाथ जी के अतिरिक्त कोई दूसरा मर्द (परब्रह्म) नहीं कहला सकता। यही स्वरूप छत्तीस हजार आत्माओं (बारह हजार ब्रह्मसृष्टियां तथा चौबीस हजार ईश्वरीसृष्टियां) के साथ जागनी रास की लीला करेंगे।

तिन पर बंदगी एक करे कोए, सो हजार बंदगियो से नेक होए। तिनके सवाब बड़ा बुजरक, देवे एही साहेब हक।। (बड़ा कयामतनामा ११/४)

साहेब श्री प्राणनाथ जी के स्वरूप पर न्यौछावर होने वाले को एक बंदगी के बदले हजार गुना से अधिक फल प्राप्त होगा। उनकी कृपा ऐसी महान है।

वेदों कहया आवसी, बुध ईश्वरों का ईस। मेट कलजुग असुराई, देसी मुक्त सबों जगदीस।। (खुलासा १२/३१)

वेदादि ग्रन्थों में कहा गया है कि कलियुग में ईश्वरों के ईश्वर श्री विजयाभिनन्द बुद्ध जी (प्राणनाथ जी) प्रकट होंगे, जो अज्ञानता को मिटाकर सबको अखण्ड मुक्ति प्रदान करेंगे।

श्री ठकुरानी जी साथ संग ले, पधारे मेरे घर। धनी बिना तुम्हें और देखे, सो नहीं मिसल मातबर।। (बीतक ६०/५८)

श्री छत्रसाल जी कहते हैं कि धाम धनी श्री प्राणनाथ जी ठकुरानी जी के साथ (युगल स्वरूप) मेरे घर पधारे हैं। जो इस स्वरूप को अक्षरातीत नहीं मानता, वह ब्रह्मसृष्टि ही नहीं है।

मूसा इबराहीम इस्माईल , जिकरिया एहिया सलेमान । दाऊदें मांग्या मेहेंदी जमाना , उस बखत उठाइयो सुभान ।। (सिनगार १/३६)

हज़रत मूसा, इब्राहिम, इस्माईल, ज़िकरिया, याहिया, सुलेमान, तथा दाऊद आदि पैगम्बरों ने भी ख़ुदा (परब्रह्म) से प्रार्थना की है कि इमाम मुहम्मद महदी श्री प्राणनाथ जी के समय में उन्हें भी तन मिले, ताकि उनके अलौकिक ज्ञान से वे जाग्रत हो सकें ।

दुनिया चौदे तबक में , काहू खोली नहीं किताब । साहेब जमाने का खोलसी , एही सिर खिताब ।। (खिलवत ११/७३)

चौदह लोकों के इस ब्रह्माण्ड में धर्मग्रन्थों के छिपे हुए रहस्यों को आज तक किसी ने भी नहीं खोला था । तारतम ज्ञान के द्वारा इनके भेदों को खोलने का श्रेय तो मात्र आखिरी जमाने के साहेब श्री प्राणनाथ जी को ही प्राप्त है, जो इस युग में सर्वेश्वर हैं ।

अब सो साहेब आइया , सब सृष्ट करी निरमल । मोह अहंकार उड़ाए के , देसी सुख नेहेचल ।। (परिकरमा २/१२)

अब अक्षरातीत इमाम महदी श्री प्राणनाथ जी इस संसार में आए हैं, जिन्होंने इस नश्वर संसार से परे का ब्रह्मज्ञान श्री कुलजम स्वरूप प्रकट किया । इस ब्रह्मज्ञान से सृष्टि के संशय मिट जायेंगे, उनके सांसारिक विकार नष्ट हो जायेंगे तथा सबके हृदय निर्मल हो जायेंगे । अन्ततः अक्षरातीत इमाम महदी अपनी कृपा से सबके मन से मोह व अहंकार का आवरण हटाकर उन्हें योगमाया में अखण्ड मुक्ति प्रदान करेंगे ।

इतहीं सिजदा बंदगी , इतहीं जारत जगात । इतहीं जिकर हक दोस्ती , इतहीं रोजा खोलात ।। (सिनगार २/४६)

आखरूल ज़मां इमाम महदी श्री प्राणनाथ जी के चरणों में प्रणाम करना है और अनन्य प्रेम लक्षणा भक्ति से इन्हें रिझाना है । इन्हीं के दर्शन करने के लिए तीर्थ यात्रा (जियारत) भी करनी है और इन्हीं पर अपना सर्वस्व समर्पण (जकात) करना है । इन्हीं के चरणों में बैठकर धनी के प्रेम की वार्ता रूपी चर्चा (जिकर) का श्रवण करना है । इन्हीं श्री प्राणनाथ जी के पावन सान्निध्य में श्रृद्धा और सेवा के द्वारा स्वयं को पवित्र करना (रोजे रखना) है ।

तारीफ महंमद मेहेंदी की , ऐसी सुनी न कोई क्यांहे । कई हुए कई होएसी , पर किन ब्रह्माण्डों नाहें ।। (सनन्ध ३०/४३)

इमाम मुहम्मद महदी पूर्णब्रह्म श्री प्राणनाथ जी की महिमा के बराबर कहीं भी, कभी भी, किसी की भी महिमा आज तक नहीं सुनी गई । श्री प्राणनाथ जी के अतिरिक्त अन्य किसी को भी साक्षात् परमात्मा अथवा खुदा कहलाने की शोभा नहीं है । आज तक असंख्यों ब्रह्माण्ड हो गये हैं और आगे भी होंगे, परन्तु श्री प्राणनाथ जी के समान महिमा वाला न तो आज तक किसी ब्रह्माण्ड में कोई हुआ है और न ही भविष्य में कभी होगा ।

मुक्त दई त्रैगुन फरिस्ते , जगाए नूर अछर । रूहें ब्रह्मसृष्ट जागते , सुख पायो सचराचर ।। (खुलासा १३/११२)

परब्रह्म श्री प्राणनाथ जी सभी फरिश्तों, ब्रह्मा, विष्णु, शिव, व सम्पूर्ण त्रिगुणात्मक जगत के जीवों को योगमाया के ब्रह्माण्ड में अखण्ड मुक्ति प्रदान करेंगे । वे ही इस नश्वर संसार की लीला को देखने आयी ब्रह्मसृष्टियों (रूहों) व परमधाम की अलौकिक लीला देखने आये श्री अक्षर ब्रह्म (नूरजलाल) को जाग्रत करके परम आनन्द प्रदान करेंगे ।

खुदा काजी होय के , कजा करसी सबन । सो हिसाब जरे जरे को , लियो चौदे भवन ।। (किरन्तन ६१/१९)

कुरआन में यह वर्णन है कि स्वयं अल्लाह तआला क़ियामत के समय न्यायाधीश बनकर सबका न्याय करेंगे । इसको सत्य सिद्ध करने के लिए वे श्री प्राणनाथ जी के स्वरूप में चौदे लोकों के प्राणियों का हिसाब लेकर सच्चे न्याय की लीला करने आ गये हैं ।

धंन धंन ब्रह्मांड ए हुआ , धंन धंन भरथ खंड । धंन धंन जुग सो कलजुग , जहां लीला प्रचंड ।। (प्रकास हि. ३१/१३३)

जिस लोक में परमात्मा स्वरूप श्री प्राणनाथ जी की अलौकिक लीला हो रही है, वह ब्रह्माण्ड धन्य-धन्य है । भारतवर्ष की भूमि भी धन्य-धन्य है जहाँ उनके चरण पड़े । यह २८वां कलियुग भी धन्य-धन्य हो गया जिसमें कभी न होने वाली ऐसी अद्भुत लीला हो रही है ।


श्री प्राणनाथ जी का स्वरूप ज्ञान की दोपहरी का वह सूरज है, जिसके उग जाने पर अध्यात्म जगत में किसी भी प्रकार का अन्धकार रूपी संशय नहीं रहता। वेदों की ऋचायें जिस अक्षर-अक्षरातीत को खोजती हैं, दर्शन ग्रन्थ जिस सत्य को पाना चाहते हैं, गीता और भागवत जिस परम लक्ष्य उत्तम पुरुष की ओर संकेत करते हैं, कुरान की आयतें जिस अल्लाह तआला का वर्णन करना चाहती हैं, बाइबल जिस प्रेम के स्वरूप का वर्णन करने का प्रयास करती है, और सन्तों की वाणियाँ जिस सत्य की ओर सन्केत करती हैं, उसकी पूर्ण प्राप्ति श्री प्राणनाथ जी की वाणी में निहित है।

इस ग्रन्थ में अक्षरातीत श्री प्राणनाथ जी की लीलाओं को उपन्यास की शैली में सरल भाषा में प्रस्तुत किया गया है।

लेखक- श्री राजन स्वामी

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