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Baal Yuwa Sanskar - बाल युवा संस्कार
चाहिए। सबसे नम्र व मधुर व्यवहार करना चाहिए।नम्र व्यक्ति सभी को प्रिय होते हैं।

(11) धैर्यः- प्रतिकूल परिस्थितियों में, आपत्ति में, भारी दुःख में भी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। मन में धैर्य, शांति रखते हुए परमात्मा श्रीराजजी व सत्गुरू महाराज का ध्यान-स्मरण करना चाहिए। परीक्षा के समय, चुनौतीपूर्ण स्थिति में, किसी महत्वपूर्ण कार्य को शुरू करने के पूर्व भी इसी प्रकार श्रीराजजी व सतगुरू का स्मरण करना चाहिए। इससे बड़ी-बड़ी परेशानियाँ भी स्वयमेव दूर हो जाती हैं। काम, क्रोध आदि विकारों को जीतने का एक सरल तरीका है- धैर्य। जब कोई सुख पाने की तीव्र इच्छा हो, तो धैर्यपूर्वक कुछ देर मन को रोके रखें, थोड़ी ही देर में वह आवेग शांत हो जायेगा।

(12) आलस्यः- मनुष्य के सफलता की राह मंे बाधक सबसे बड़ा अवगुण है- आलस्य। हितोपदेश 34 में कहा गया है ‘‘इस संसार में अपना कल्याण चाहने वालों को निंद्रा, तंद्रा, भय, क्रोध, आलस्य और दीर्घसूत्रता- ये छः अवगुणों को छोड़ देना चाहिए।’’ आलस्य से, काम न करने से, मात्र खाने-पीने से या लेटे-लेटे टी.वी. देखने से शरीर कमजोर व बीमार हो जाता है। थोड़ा सा खाना भी पचाना मुश्किल हो जाता है। कमजोरी के कारण थोड़े से काम से ही हम थक जाते हैं। मानसिक शक्ति भी कम हो जाती है। पैसे खर्च करने से या दवाईयाँ खाने से स्वास्थ्य ठीक नहीं हो सकता, श्रम ही एक मात्र रास्ता है। आलसी व्यक्ति जीवन में कभी भी सफलता नहीं प्राप्त कर सकता। आलस्य में जीवन का कीमती समय हम व्यर्थ गंवा देते हैं।

(13) समय का सदुपयोगः- समय के पूर्ण सदुपयोग से ही हम महान बन सकते हैं। एक-एक क्षण का सदुपयोग करें। व्यर्थ बातों में व कार्यों में समय नष्ट न करें। जिस प्रकार महीने भर के धन खर्चे का बजट बनाते हैं, ताकि धन का सही व पूरा उपयोग हो। उसी प्रकार जीवन के एक-एक क्षण का सदुपयोग हो, इसके लिए भी एक ऐसी ही योजना समय-सारिणी बनानी चाहिए। दिन भर की समय-सारिणी (दिन-चर्या) लिखित रूप में तैयार करके, सख्तीपूर्वक उसका पालन करें। नियम पालन में जरा भी ढील मत करो क्योंकि एक बार की ढील हमेशा की आदत बन जाती है। खोई हुई दौलत पुनः कमायी जा सकती है, किंतु खोया समय पुनः वापस नहीं आता।

कबीरजी ने कहा है-

‘‘कल करे सो आज कर, आज करे सो अब।

                    पल  में परले   होवहीं,  बहुरि करेगा कब।।’’

(14) भाग्य:- भाग्य की चादर मत ओढ़ो। कई लोग कहते हैं, वही होगा जो भाग्य में लिखा होगा, इसलिए ज्यादा मेहनत करना, प्रयास करना व्यर्थ है। तो ऐसे लोग भूख लगने पर खाना क्यों खाते हैं, बुखार होने पर गोली क्यों खाते हैं। उस समय भी भाग्य पर छोड़ देना चाहिए। वास्तव में कर्म किए बगैर मनुष्य एक क्षण भी नहीं रह सकता। हमारे पूर्व संचित कर्मफल ही हमारा भाग्य (प्रारब्ध) बनकर सामने आते हैं। अतः कर्म (पुरूषार्थ) से भाग्य को बदला जा सकता है। जो भाग्य पर सब छोड़कर आलस्य या गलत काम करते हैं, तो वे समझ लें कि फिर भाग्य से ही उन्हें दुख भी उठाना पड़ेगा। एतरेय ब्राह्मण में कहा गया है कि ‘‘जो बैठता है, उसका भाग्य बैठता है। जो खड़ा होता है, उसका भाग्य खड़ा होता है। जो सोता है, उसका भाग्य सो जाता है। जो चलता है, उसका भाग्य भी चलता है। श्रम किए बिना ‘श्री’ की प्राप्ति नहीं होती इसलिए प्रयत्न करो, प्रयत्न करो।’’

(15) अस्तेय (चोरी न करना):- दूसरे का धन या समान की चोरी नहीं करनी चाहिए। इससे जीवन मंे कभी भी सुख-शांति नहीं प्राप्त हो सकती। गलत तरीके (बेईमानी) से, बिना मेहनत के कमाया धन भी चोरी ही कहलाता है। दूसरों के