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Baal Yuwa Sanskar - बाल युवा संस्कार
की एकाग्रता व स्मरण शक्ति बढ़ती है, जिससे पढ़ने व याद करने में ज्यादा समय नहीं लगता। इस प्रकार समय की बचत होती है।

(5) प्रतिदिन सुबह उठने के बाद माता-पिता को, घर के बड़ों को व अन्य सदस्यों को भी प्रणाम करना चाहिए। बड़ों को चरण स्पर्श करके एवं बराबर वालों को दोनों हाथ जोड़कर, शीश झुकाकर प्रणाम करना चाहिए। इस तरह से प्रणाम करने से हमारा अहंकार पिघलता है, अंतःकरण निर्मल होता है। बड़ों का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे आयु, विद्या, कीर्ति व बल ये चारों बढ़ते हैं।

(6) इसके पश्चात् स्वास्थ्य रक्षा हेतु, शारीरिक व मानसिक शक्ति की वृद्धि के लिए कुछ व्यायाम, आसन, प्राणायाम करना चाहिए। जो बच्चे दिन भर पढ़ते रहते हैं, दिमागी काम करते रहते हैं, जो बाहरी खेल, नहीं खेल पाते हैं। उनके स्वास्थ्य के लिए योगासन व प्राणायाम अत्यंत आवश्यक है। संयमपूर्वक रहने से, योगासन व प्राणयाम करने से हमें डाक्टर की गुलामी नहीं करनी पड़ती। (देखिये ‘योगासन व प्राणायाम’ अध्याय)

(7) इसके पश्चात् पढ़ाई या अन्य कार्य प्रारम्भ कर देना चाहिए। इसी प्रकार शाम को भी दंतधावन, शौच व स्नान करके, संध्या सेवापूजा व ध्यान करना चाहिए। इससे तन-मन की शक्ति बढ़ती है, मन शांत होता है, स्मरण शक्ति बढ़ती है, विचार शुद्ध व पवित्र बनते हैं।

 

सदाचार

भूमिकाः- धर्मग्रंथों में मनुष्यों के लिए जो श्रेष्ठ आचरण का निर्देश है, उसे सदाचार कहते हैं। सत् $ आचार मिलकर सदाचार बनता है। जिस आचरण से समस्त प्राणियों को सुख पहुँचे उसे सदाचार कहते हैं। सत्य धर्म का आचरण सदाचार कहलाता है। धर्माचरण अर्थात् सदाचार से इस संसार में भी सुख शांति की प्राप्ति होती है और मरणोंपरांत भी सद्गति प्राप्त होती है। परलोक में एक धर्म ही साथ जाता है। स्त्री, पुत्र, संबंधी आदि कोई भी मदद नहीं कर सकता। अकेले ही किये हुए पुण्य व पाप का फल भोगना पड़ता है। मनुष्य धर्म के पालन से दुख प्राप्त होने पर तथा भारी विपत्ति पड़ने पर भी धर्माचार न छोड़े, अधर्म को न पकड़े क्योंकि किये हुए अच्छे-बुरे कर्म भूमि और गाय के समान तुरंत फल नहीं देते। कुछ समय में पापी का सर्वनाश कर धर्मी को सुख प्रदान करते हैं। निष्काम भाव से सदाचार का पालन करते रहने से मन निर्मल होकर शीघ्र आत्म-कल्याण होता है। आज के विद्यार्थियों में सदाचार का बहुत अभाव दिखता है, जिस कारण वे गलत रास्ते में भटक रहे हैं, अनेक प्रकार की बुराईयों में फँस रहे हैं। जिससे वे शारीरिक व मानसिक रूप से कमजोर हो रहे हैं। वे सुखों को प्राप्त करने के लिए गलत रास्ते अपना रहे हैं। जिसका परिणाम दुःख, अशांति व पश्चाताप के सिवा कुछ नहीं होता है। वे तात्कालिक लाभ देखकर कार्य करते हैं, जिसका उन्हें बाद में बहुत नुकसान उठाना पड़ता है। इन सदाचार के नियमों का पालन करने से मन निर्मल, शांत होकर एकाग्र होता है, हम शारीरिक व मानसिक रूप से मजबूत होंगे व जीवन में सुख-शांति व बड़े से बड़े लक्ष्य को प्राप्त कर सकेंगे। सदाचार के पालन से मनुष्य का जीवन उज्जवल बनता है।

(1) अहिंसाः- किसी भी प्राणी को मन, वचन, कर्म से जरा भी दुख नहीं देना चाहिए। कोई व्यक्ति हमें दुख पहुँचाए तो भी उसे बदले में दुख नहीं देना चाहिए। छोटे-बड़े जीव-जंतुओं को भी परेशान नहीं करना चाहिए, न ही उन्हें मारना चाहिए। समस्त प्राणियों के प्रति हमारे दिल में दया का भाव होना चाहिए। इससे मन निर्मल व एकाग्र होता है। ‘‘साफ दिल सोहागनी, कबहूँ ना दुखावे किन।’’

(2) वाणी संयमः-शांति व आनंद के इच्छुक मनुष्यों को कभी किसी के साथ वाद-विवाद, झगड़ा नहीं करना चाहिए। निंदा, चुगली भी नहीं करनी चाहिए। व्यर्थ बातचीत, गप्पबाजी भी नहीं करना चाहिए। कटु वचन व झूठ नहीं बोलना चाहिए। इससे मानसिक