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Baal Yuwa Sanskar - बाल युवा संस्कार
चटपटे, तेल में तले हुए, बासी, दुर्गंधयुक्त भोजन (लहसुन, प्याज), चाय, काफी, बाजारू खाद्य पदार्थ आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। इनसे अनेक शारीरिक बीमारियाँ जैसे रक्त-विकार, कब्ज, एसिडिटी, खांसी, जुकाम, ज्वर, उच्च रक्तचाप, डाईबिटीज, खुजली, मुहांसे, अल्सर, छाले आदि तो होते ही हैं। साथ ही इन भोजनों में तमोगुण व रजोगुण की मात्रा अधिक होने से अनेक मानसिक बीमारियाँ जैसे काम, क्रोध, लोभ, ईष्र्या, द्वेष, अहंकार, आलस्य, निंद्रा, चंचलता, एकाग्रता में कमी, मानसिक कमजोरी, अशांति, याददाश्त में कमी आदि भी हो जाती हैं। इसलिए देखा जाता है कि जिह्वा के स्वाद में डुबने वाले बच्चे पढ़ाई में कमजोर हो जाते हैं। ऐसे भोजन में पौष्टिकता नहीं होने से भी बच्चे शारीरिक व मानसिक रूप से कमजोर हो जाते हैं। बाजारू खाद्य पदार्थ समोसा, कचोरी ब्रेड आदि अशुद्ध वातावरण में पकाये जाने से शारीरिक व मानसिक रूप से अधिक नुकसानप्रद होते हैं। बाजारू  आईसक्रीम व चाकलेट आदि रक्तविकार (मुँहासें आदि) के मुख्य कारण हैं। इन खाद्य पदार्थों मंे माँसाहारी सामग्री (जैसे गाय की चर्बी, हड्डी का चुरा आदि) मिले होने की संभावना रहती है। बाजारू शीतल पेय (कोल्ड ड्रिंक्स) में कोई पौष्टिक तत्व नहीं होता बल्कि कार्बन डाई आक्साईड, सोडा, शक्कर आदि नुकसानकारक पदार्थ भरे होते हैं, जिनसे हड्डी, दांत, नर्वस सिस्टम, याद शक्ति, रोग प्रतिरोधक शक्ति में नुकसान होता है।

भोजन स्वादिष्ट हो या न हो किंतु पौष्टिक व सुपाच्य होना चाहिए। भोजन में हरी सब्जी, सलाद, फल आदि सात्विक पदार्थों का अधिक सेवन करना चाहिए। नाश्ते में चाय-काफी, ब्रेड-बिस्कुट आदि की जगह दूध, सूखे मेवे, फल, अंकुरित मूंग आदि का प्रयोग करना चाहिए। मिठाई की जगह फलों का इस्तेमाल करें। क्योंकि ये पौष्टिक व स्वास्थ्यवर्धक होते हैं। बहुत जरूरी हो तो चाय-पत्ती की जगह आयुर्वेदिक चाय पी सकते हैं। लाल मिर्च की जगह काली मिर्च खा सकते हैं। लहसुन, प्याज औषधी के रूप में फायदेमंद होने के बावजूद भी मानसिक रूप से नुकसानप्रद होते हैं क्योंकि ये तमोगुणी भोजन हैं। कहा गया है कि ‘‘ जैसा खाओगे अन्न, वैसा होगा मन। जैसा पियोगे पानी, वैसी होगी वाणी।’’ सात्विक भोजन से शरीर स्वस्थ, निरोगी व बलवान तो होता ही है, साथ ही मन शांत होकर एकाग्रचित्त होता है। बुद्धि का विकास होता है, याददाश्त बढ़ती है। काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईष्र्या, द्वेष, आलस्य आदि विकार नहीं सताते। सदाचार, संयम, सहनशीलता, धैर्य, क्षमा, भक्ति, सेवा, प्रेम आदि कई सद्गुण आ जाते हैं। कभी-कभी उपवास भी करना चाहिए। इससे पेट की गंदगी जल जाती है, जिससे कई बीमारियाँ दूर हो जाती हैं। कब्ज दूर होकर पाचन शक्ति बढ़ती है। साथ ही मन शुद्ध, सात्विक, एकाग्र होता है। विकार नष्ट हो जाते हैं।

(2) आँखेंः-आँखें सुंदरता देखना चाहती हैं। जिसका एक माध्यम है-टेलीविजन जो कि मनोरंजन का एक प्रमुख साधन है। कई बच्चे रात को देर तक टी.वी. देखते हुए सोते हैं। सुबह उठते ही फिर टी.वी. देखने लगते हैं। स्कूल से आते ही पुनः टी.वी. देखने लगते हैं। आजकल केबल टी.वी. पर तो दिन-रात अनेक प्रकार के मनोरंजक नाटक व फिल्में आती रहती हैं। इनको जिसने एक बार देखा तो समझो कि उसे टी.वी. की बीमारी लग गयी अर्थात् उसे टी.वी. की आदत पड़ जाती है, वह टी.वी. देखे बिना नहीं रह पाता। इससे कई तरह की शारीरिक बीमारियाँ हो जाती हैं जैसे आँखें दुखना, आँखें कमजोर हो चश्मा लगना, सिर दर्द, मस्तिष्क कमजोर होना, पाचन शक्ति कमजोर होना, स्मरण शक्ति कमजोर होना, नींद नहीं आना, उच्च रक्तचाप आदि। इससे बच्चों के मन पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। वे आलसी, स्वेच्छाचारी, विलासी, भविष्य के प्रति लापरवाह हो जाते हैं। उनका पढ़ाई में या काम में मन नहीं लगता। वे नाटक या फिल्में देखकर एक ऐसी काल्पनिक (सपनों की) दुनिया में खोये रहते हैं, जिनका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं होता।