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Baal Yuwa Sanskar - बाल युवा संस्कार
देखकर सीखने की आदत होती है। वे माता-पिता, भाई-बहिन, दोस्त आदि को देखकर बहुत से गुण सीख जाते हैं। अतः माता-पिता को अपने बच्चों के सामने अपना उत्तम से उत्तम चरित्र रखना चाहिए। माँ को सेवाभावी, कर्मठ, धार्मिक व गृहकार्य में दक्ष होना चाहिए। क्योंकि उसकी बेटी उसे देखकर ही सीखेगी। माता-पिता को बच्चों के सामने किसी प्रकार का गलत कार्य, छल-कपट, गाली-गलौच, लड़ाई-झगड़ा, चोरी, झूठ बोलना, नशा आदि नहीं करना चाहिए। बच्चों को गाली, गंदे, अपशब्दों से नहीं डाँटना चाहिए। इससे वे भी गाली देना सीख जाते हैं। सात्विक खान-पान करते हुए सादगी पूर्वक स्वयं भी रहना चाहिए व बच्चों को भी वही सिखाना चाहिए। घर में अश्लील चित्र (पोस्टर) या मूर्तियाँ नहीं रखनी चाहिए। माता-पिता को बालकों के सन्मुख हंसी-मजाक या एक शैय्या पर सोना-बैठना नहीं चाहिए। गर्भाधान के समय से ही माता-पिता के खान-पान व रहन-सहन का बच्चे पर प्रभाव पड़ता है अतः गर्भाधान के समय से ही माता-पिता को संयमपूर्वक रहना चाहिए।

(9) माता-पिता को स्वयं भी श्रीराजश्यामाजी की पूजा करनी चाहिए एवं बच्चों को भी सेवापूजा का अभ्यास कराना चाहिए क्योंकि भक्ति के द्वारा अनेक सद्गुण स्वतः ही आ जाते हैं। कुछ माँ-बाप ऐसा सोचते हैं कि धार्मिक शिक्षा या भक्ति से हमारा बेटा बाबा बन जायेगा परंतु ऐसा नहीं है। वास्तव में धार्मिक शिक्षा का लक्ष्य बच्चों को बाबा बनाना नहीं है बल्कि उन्हें सुरक्षित रूप से ब्रह्मचर्याश्रम (विद्यार्थी जीवन) से गृहस्थाश्रम तक पहुँचाना है। उनमें से दुराचार आदि दुर्गुणों को निकालकर, उनके अंदर सदाचार, संयम आदि सद्गुणों को भरना है। यदि आपके बेटे में धार्मिक भाव नहीं होगा तो वह आपकी भी सेवा नहीं करेगा। क्योंकि धर्म ही माता-पिता, गुरू व बड़ों की सेवा करने का सिखापन देता है। और शास्त्रों की यह बात भी विचारणीय है कि ‘‘दुराचारी पुत्र, भक्त माता-पिता का भी पतन कर देता है और भक्त पुत्र, दुराचारी माता-पिता का भी कल्याण कर देता है।’’

(10) बालकों को बचपन से ही ईश्वर भक्ति, पूजा, बड़ों की सेवा, आज्ञापालन, प्रणाम करना आदि उत्तम आचरणों की शिक्षा दें। माँ बच्चे की प्रथम गुरू होती है। उसे बच्चों को बचपन से ही धार्मिक शिक्षाप्रद कहानियाँ सुनाना चाहिए। लोरी या फिल्मी गानों की बजाय परमात्मा का नाम, जप व भजन सिखाना चाहिए। बड़े बच्चों को अच्छे धार्मिक व शिक्षाप्रद किताबें पढ़ने हेतु देना चाहिए। झूठ, कपट, चोरी, हिंसा आदि बुरे आचरणों का त्याग करके न्यायपूर्वक धन उपार्जन की शिक्षा दें। इस प्रकार आचरण करने से आयु, विद्या, यश, बल बढ़ता है। उन्हें भौतिकवाद, सांसारिक सुखों की आदतों में डुबाने की बजाय सदाचार, संयमपूर्वक परमात्मा की भक्ति करने की शिक्षा देनी चाहिए। क्योंकि सच्चा सुख, शांति के स्रोत तो वे परमात्मा ही हैं। इसी के द्वारा जीवन में भी वे महान बन सकते हैं। इसके बिना, भौतिकवाद में डूबने से परमात्मा तो क्या, दुनिया में भी सुख-शांति नहीं मिल सकती।

(11) बच्चों को उत्तम शिक्षा दिलवानी चाहिए क्यांेकि चाणक्य नीति 2/11 में कहा गया है कि ‘‘जो माता-पिता अपने बच्चों को विद्या नहीं पढ़ाते वे शत्रु समान कहे जाते हैं। क्योंकि बिना पढ़ा हुआ बालक विद्वानों की सभा में वैसे ही शोभा नहीं पाता जैसे हंसों के बीच बगुला।’’ लड़कियों को भी लड़कों के समान ही शिक्षा देनी चाहिए क्योंकि कई बार लड़के छोड़ देते हैं, पर लड़कियाँ सेवा करके दिखाती हैं।

(12) पूर्ण शारीरिक व मानसिक विकास के लिए बच्चों का बाल विवाह नहीं करना चाहिए।

 

 

नशा - एक विनाशकारी दुव्र्यसन

(1) चाय-काफीः- आज के सभ्य समाज में तंबाकू, बीड़ी, शराब आदि को तो नशा माना जाता है किंतु चाय-काफी को नशा नहीं माना जाता। यह एक बहुत बड़ी अज्ञानता है। बुद्धिजीवी वर्ग स्पष्ट रूप से जानता है कि यह भी एक नशा है। शरीर में जब थकावट होती है तो