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Baal Yuwa Sanskar - बाल युवा संस्कार
बचपन का होता है। बच्चे का दिल साफ होता है। उस समय दिल में जो संस्कार जम जाते हैं, वो दृढ़ हो जाते हैं। आज की खराब सामाजिक परिस्थितियों, केबल टी.वी., गंदी फिल्मों, उपन्यासों, बुरे दोस्तों आदि से अपने बच्चों की रक्षा करने हेतु उन्हें उचित संस्कार देना बहुत जरूरी हो गया है। हम अपने बच्चों को भौतिक रूप से भले कुछ (धन, संपत्ति आदि) दे सकें या ना दे सकें किंतु संस्कार रूपी अनमोल धन देकर उन्हें सच्चा धनवान बना सकते हैं। बच्चों को संस्कारित करने के लिए कुछ सुझाव नीचे दिये जा रहे हैं।

(1) बच्चों को ज्यादा सुख सुविधाओं में रखना नुकसानप्रद होता है। जैसे टी.वी., वीडियो गेम, स्वादिष्ट भोजन, फैशनेबल कपड़े, अधिक जेब खर्च, गाड़ी आदि। इससे उनकी रुचि इन सुखों को भोगने में लगी रहती है। मन चंचल हो जाता है। एकाग्रता भंग हो जाती है। पढ़ी हुई बातें भी भूल जाती हैं। वे ख्यालों में खोये रहते हैं, ऐसी सपनों की दुनिया में, जिनका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं होता।

(2) बच्चों को फिल्म देखने व फिल्मी संगीत सुनने के लिए प्रेरित, प्रोत्साहित न करें बल्कि उन्हें रोकें। जो बच्चे बचपन से ही प्रेम व अश्लीलता से परिपूर्ण ऐसे फिल्म व गाने, देखते व सुनते हैं, तो उनकी मनोवृत्ति वैसे ही हो जाती है और वे वैसा ही कर्म करने लगते हैं। जैसे प्रेम करना, घर से भागना आदि। अतः ऐसे टी.वी. चैनलों, फिल्मों, गानों, किताबों से बच्चों को बचाना अत्यंत आवश्यक है। अतः केबल कनेक्शन तुरंत कटवा दीजिए। फिल्मी वी.सी.डी., गानों की सी.डी. तथा ऐसी किताबें घर में रहने मत दीजिए, तुरंत फेंक दीजिए।

(3) बच्चों को बचपन से ही सात्विक भोजन (मिर्च-मसाला रहित) का अभ्यास करायें। तामसी, रजोगुणी (खट्टे, तीखे, मीठे) भोजन की आदत न पड़े इसका ध्यान दें। क्योंकि एक बार आदत पड़ने पर उन्हें छोड़ना मुश्किल हो जाता है। (सात्विक भोजन के फायदे व तमोगुणी, रजोगुणी भोजन के नुकसान के लिए देखें ‘इंद्रिय-संयम’)

(4) बच्चों को बचपन से ही सादगी से रहना व सादे कपड़े पहनना सिखाना चाहिए। फैशन की दौड़ से उन्हें बचाना होगा। बच्चों को गहने पहनाकर नहीं सजाना चाहिए। इससे संस्कार की हानि के साथ-साथ कहीं-कहीं प्राणों का भी जोखिम हो जाता है।

(5) जैसे-तैसे दो नंबर से (गलत तरीके से) धन कमाकर बच्चों को ज्यादा सुख देने, उच्च शिक्षा देने की इच्छा न करें क्योंकि शास्त्रों में कहा गया है कि अनीति का धन, हमें भी दुखी करता है, बच्चों को भी दुखी करता है और जो जो उस धन का उपयोग करता है, उनको भी दुखी करता है। ज्यादातर देखा गया है कि बड़े घरों के बच्चे ज्यादा विलासी, असंयमी, दुराचारी हो जाते हैं।

(6) बच्चों की 10 साल से 20 साल तक की अवस्था बहुत नाजुक होती है। वे नादान, नासमझ होते हैं, जिससे वे सरलता से किसी के बहकावे में आ सकते हैं। अतः बच्चों को घूमने-फिरने की खुली छूट नहीं देनी चाहिए। माता-पिता को बच्चों पर हमेशा नजर रखनी चाहिए कि कहीं कुसंगति में पड़कर, गलत बातंे तो नहीं सीख रहे। जैसे गुटखा, बीड़ी-सिगरेट आदि नशीले पदार्थों का सेवन करना, गंदे साहित्य पढ़ना, स्कूल से भागकर फिल्में देखना आदि।

(7) बच्चों को अनुचित लाड़-दुलार नहीं करना चाहिए, नहीं तो वे जिद्दी होकर बिगड़ जाते हैं। चाणक्य नीति 2/12 में कहा गया है कि ‘‘अनुचित दुलार से बहुत दोष उत्पन्न होते हैं तथा ताड़ना से अनेक सद्गुण, इसलिए पुत्र तथा शिष्य को ताड़ना दें (नियंत्रण में रखें, उच्छृंखल न होने दें) अनुचित दुलार न करंे।’’ चाणक्य नीति 3/18 में कहा गया है कि ‘‘पुत्र को 5 वर्ष तक दुलार करें और दस वर्ष तक ताड़ना दें किंतु 16 वर्ष के हो जाने पर पुत्र के साथ मित्रता का व्यवहार करें।’’

(8) बच्चों में