श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ || Shri Prannath Jyanpeeth

हमारी गौरव गाथा

जब सारे संसार में अज्ञानता का अन्धकार फैला हुआ था, उस समय भारतवर्ष (आर्यावर्त) के स्वर्णिम क्षितिज पर वैदिक ज्ञान का सूर्य अपने प्रखर तेज से तप रहा था। वही प्रकाश धीरे-धीरे संसार के सभी देशों में फैला। यदि कोई निष्पक्ष हृदय से विचार करे, तो उसे यह मानने के लिये विवश होना पड़ेगा कि ज्ञान-विज्ञान का सूर्य सर्वप्रथण भारत मे ही उदित हुआ है। उसकी गौरवमयी झलकियों के कुछ बिन्दु इस प्रकार हैं -

१. सौरमण्डल की इस वर्तमान पृथ्वी की सृष्टि में १,६६,०८,५३,१२३ वर्ष व्यतीत हो चुके हैं। इसमें छः मन्वन्तर बीत चुके हैं, सातवां वैवस्वत मन्वन्तर चल रहा हैए अर्था- प्रथम मन्वन्तर से लेकर इन सात मन्वन्तरों में सात मनु - स्वायंभुव, स्वारोचिष, उत्तम, तामस, रैवत, चाक्षुष तथा वैवस्वत हो चुके हैं। इन सात मनुओं ने अपने-अपने समय पर मानवीय सृष्टि का विस्तार किया है, जबकि संसार की अधिकतर सभ्यताओं का समय २५ लाख से अधिक नहीं जाता।

२. सृष्टि के प्रारम्भिक काल के स्वायंभुव मनु से लेकर धर्मराज युधिष्ठिर के बीच में मान्धाता, सुद्युम्न, कुवलयाश्व, शशिबिन्दु, हरिश्चन्द्र, अम्बरीष और भरत आदि अनेकों चक्रवर्ती सम्राट आर्यावर्त आधुनिक भारतवर्ष (नेपाल, पाकिस्तान, बर्मा, भूटान, अफगानिस्तान)ध में हो चुके हैं।

३. हिमालय के मानसरोवर क्षेत्र में सर्वप्रथम दैवी सृष्टि उत्पन्न हुई, जिसका विस्तार सारे विश्व में हुआ। चीन, जापान, युरोप, अमेरिका, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया आदि में जहां भी मानवीय सृष्टि है, सब यहीं का विस्तार है।

४.पृथ्वी पर ज्ञान का सर्वप्रथण अवतरण भारत के इसी मानसरोवर क्षेत्र में हुआ। वर्तमान समय में प्रचलित भूगर्भ विद्या, वायुयान विद्या, रसायन विज्ञान, गणित तथा चिकित्सा आदि का मूल बीजरूप से वेदों में निहित है।

५. संसार की समस्त भाषायें भी इसी वैदिक संस्कृत से उत्पन्न हुयी हैं। ग्रीक, लैटिन, अरबी, फारसी, अंग्रेजी, हिब्रू, फ्रेंच, स्वाहिली आदि सभी भाषाओं का मूल वैदिक संस्कृत है।

६. अध्यात्म का सर्वेपरि ज्ञान वेदों में निहित है। संसार के सभी मत-मतान्तर रूपी नदियों में जो भी जल दिखायी पड़ रहा है, वह वैदिक ज्ञान रूपी महासागर से बनने वाले बादलों की वर्षा (मानसूनी या हिम) का ही जल है।

७. जब संसार में आक्सफोर्ड या कैम्ब्रिज आदि विश्वविद्यालयों का नाम भी नहीं था, उस समय भारत में ऋषि मुनियों के आश्रम ही विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा दिया करते थे। प्रसिद्ध है कि भारद्दाज और दुर्वासा ऋषि के आश्रम में १०-१० हजार विद्यार्थी निवास करते थे। इसी प्रकार सान्दीपनि ऋषि का आश्रम भी शिक्षा का बहुत बड़ा केद्ध था। महाभारत के पश्चात्‌ भी नालन्दा, तक्षशिला तथा विक्रमशिला के विश्वविद्यालय अपने ज्ञान के लिये विश्व प्रसिद्ध रहे हैं।

८. श्री प्राणनाथ जी की तारतम वाणी में तो भारतभूमि को स्वर्ग और वैकुण्ठ से भी श्रेष्ठ कहा गया है और सभी मतों में हिन्दू धर्म को सर्वोपरि कहा है।

श्त्रैलोकी में रे उत्तम खण्ड भरथ कोए तामें उत्तम हिन्दू धरम।श्श्

भारतवर्ष (प्राचीन आर्यावर्त) के अतिरिक्त अन्य सभी देश भोग भूमि के अन्तर्गत हैं, जहां केवल भौतिकता (गोमांस भक्षण, मद्यपान इत्यादिद्)ध की प्रधानता है।
भोम भली भरतखण्ड कीए जहां आई निध नेहेचल । और सारी जिमी खारीए खारे जल मोहजल ॥।

९. इस सन्दर्भ में विष्णुपुराण का यह कथन भी देखने योग्य है-
गायन्ति देवारू किल गीतकानिए धन्यास्तु ते भारत भूमि भागे । स्वर्गापवर्गास्पदमार्गभूतेए भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वात्‌ ।।

अर्थात्‌ स्वर्ग में स्थित देवता भी भारतवर्ष की महिमा का गायन करते हुए कहा करते हैं - भारतवर्ष में जन्म लेने वाले मनुष्य धन्य हैं। स्वयं देवगण भी स्वर्ग के सुखों को छोड़कर भारतवर्ष में जन्म लेने की इच्छा करते हैं।
वस्तुतः आध्यात्मिक ज्ञान, वैराग्य तथा भक्ति की धरती भारतवर्ष ही है। हिमालय के कैलाश, मानसरोवर तथा गंगोत्री के हिमाच्छादित स्थानों में उच्च स्तरीय समाधिस्थ योगी मिला करते हैं, जबकि यूरोप के आल्पस एवं अमेरिका और आस्ट्रेलिया के पर्वतों में कहीं भी समाधिस्थ योगी नहीं मिलते।

१०. मैक्समूलर ने भारतीय प्रशासनिक सेवा
(Indian Civil Servie - ICS)
में नियुक्त युवकों को इंग्लैण्ड से भेजे जाते समय भारत का परिचय देते हुए कहा था- "आप अपने अध्ययन के लिए चाहे जो भी भाषा अपनाएं- भाषा, धर्म, दर्शन, कानून, परम्पराएं, प्रारम्भिक कला या विज्ञान- हर विषय का अध्ययन करने के लिए भारतवर्ष ही सर्वाधिक उपयुक्त क्षेत्र है। आप पसन्द करें या न करें, परन्तु वास्तविकता यही है कि मानवता के इतिहास की बहुमूल्य एवं निर्देशक सामग्री भारतभूमि में संचित है, केवल भारतभूमि में।" -हम भारत से क्या सीखें

११. फ्रांस के महान्‌ सन्त एवं विचार कक्रूज़े
(Cruiser)
ने बलपूर्वक लिखा है-
"If there is a country which can rightly claim that honour of being the cradle of human race of at least the scene of primitive civilization, the sucessive developments of which carried in all parts of the ancient world, and even beyond the blessings of knowledge which is the second life of man, that country assuredly is India."


अर्थात्‌ . यदि कोई देश वास्तव में मनुष्य-जाति का पालक होने अथवा उस आदिसभ्यता का, जिसने विकसित होकर संसार के कोने-कोने में ज्ञान का प्रसार किया, स्रोत होने का दावा कर सकता है, तो निश्चय ही वह देश भारत है।

१२. क्रूजे की इस भारत-स्तुति का कारण स्पष्ट करते हुए विलियम दुरां
(William Durant)
ने कहा है -
"India was the Motherland of our race and Sanskrit of Mother of European languages, she was the Mother of our philosophy, Mother through the Arabs, of our Maths, Mother, through the Buddha, of the ideals embodies, in Christinity, Mother through the village community, of self-government and democracy. Mother India is in many ways the mother of all of us."


अर्थात्‌ - भारत मनुष्य जाति की मातृभूमि और संस्कृत यूरोपियन भाषाओं की जननी है। वह हमारी दर्शन की जननी है। अरबों के माध्यम से हमारे गणित की जननी, बुद्ध के माध्यम से ईसाइयत में निहित आदशों की जननी, ग्राम-पंचायत के माध्यम से स्वायत्त शासन व लोकतन्त्र की जननी है।

१३. भारत ही वह पुण्यभूमि है, जहां सर्वप्रथम ईश्वरीय ज्ञान के रूप में वैदिक ऋचाओं के स्वर गुंजे। यहां के ही वनों में ऋषियों ने अध्यात्म के गहन रहस्यों को ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषदों के रूप में प्रस्तुत किया।

१४. एकमात्र भारतभूमि को ही यह गौरव प्राप्त है, जिसमें सृष्टि के छः कारणों की व्याख्या में छः ऋषियों - गौतम, कपिल, कणाद, पतंजलि, जैमिनि तथा व्यास के द्वारा क्रमशः न्याय, सांख्य, वैशेषिक, योग, मीमांसा तथा वेदान्त दर्शनों की रचना की गयी।

१५. सौरमण्डल की वर्तमान सृष्टि का सर्वप्रथम महाकाव्य वाल्मीकि रामायण है, जो आज से लगभग १६ लाख वर्ष पहले लिखा गया था। यद्यपि ब्राह्मण और आरण्यक ग्रन्थों की रचना वाल्मीकि रामायण से बहुत पहले हो चुकी थी।

१६. स्वायंभुव मन्वन्तर में स्वायंभुव मनु के द्वारा लिखी गयी मनुस्मृति (शुद्ध) सृष्टि का प्राचीनतम धर्मशास्त्र है, जो काव्य के खूप में है।

१७. यह अब प्रायः निर्विवाद है कि संसार-भर में जितनी विद्या है, वह सर्वत्र भारत से प्रसारित है। पाश्चात्य विद्वानों में अत्यन्त प्रतिष्ठित मातृलिंग
(Maeterlinck)
ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ
"Secret Heart"
में लिखा है-
It is now hardly to be contested that the source (of knowledge) is to be found in India. Hence in all probabilty the sacred teaching spead in to Egypt, found its way to ancient Persia and Chaldia, permitted the Hebrew race and crept in greece and the south of Europe, finally reaching China and even America." (Page 5)
अर्थात्‌ - अब इस पर विवाद की कोई सम्भावना नहीं कि विद्या का मूल स्थान भारतवर्ष में पाया जाता है। सम्भवतः वहां से यह शिक्षा मिश्र में फैली, मिश्र से प्राचीन ईरान तथा कालदिया (अरब देश) का मार्ग पकड़ा, यहूदी जाति को प्रभावित किया, फिर यूनान तथा यूरोप के दक्षिण भाग में प्रविष्ट हुई। अन्त में चीन और अमेरिका में पहुंची।

१८. जैकालयट का कथन है कि भारतवर्ष संसार का पालना है। वहीं से सबकी माता ने अपने बच्चों को सुदूरतम भेजा है और अपना उद्भव याद दिलाने के लिए अपनी भाषा, विधान, आचार, साहित्य और धर्म का दायभाग दिया है। वे अरब, फारस, मिश्र घूम जायें, उनसे भी आगे अपनी सुखदा जन्मभूमि से दूर धुंधले उत्तर में पहुंच जायें, वे अपने आदि मूल को भूलने का यत्न करें, उनकी चमड़ी गेहुंआ रहे या बर्फ के सम्पर्क में सफेद हो जाये, उनके द्वारा स्थापित राज्यों का नाश हो जाये और कालान्तर में थोड़े-से टूटे-फूटे विचित्र खम्भों के अतिरिक्त कुछ भी शेष न रहे, पुराने नगरों के खण्डहरों पर नये नगर बस जायें, किन्तु काल और विनाश मिलकर भी उन पर पड़ी मूल की स्पष्ट छाप को नहीं मिटा सकेंगे। आगे जैकालयट लिखते हैं- एक बात मुझे सदा आश्चर्य में डालती है कि हमारे विचारकों, हमारे नीतिकारों और हमारे व्यवस्थापकों ने किन ग्रन्थों के अध्ययन से अपने को बनाया ? मिस्र के मेनी, मुसा, सुकरात, प्लेटो और अरस्तू के अग्रगामी कौन थे ? निःसंदेह इन सबके ज्ञान का आधार था वैदिक साहित्य।

१९. अमेरिकन विदुषी श्रीमती हवीलर विल्लोक्स (ममसमत पससवग) ने इस विषय में अपने उद्गार इन शब्दों में व्यक्त किए हैं.
"It (India) is the land of the great Vedas - the most remarkable works, containing not only religious ideas for a perfect life but alos facts which science has since proven true. Electricity, Radium, Electrons, Airships - all seem to have been known to the seers who found the Vedas".
अर्थात्‌ - यह (भारत) उन महान वेदों की भूमि है, जो अद्भुत ग्रन्थ हैं, जिनमें न केवल पूर्ण जीवन के लिए उपयोगी धार्मिक सिद्धान्त बताये गये हैं, अपितु उन तथ्यों का भी प्रतिपादन किया गया है, जिन्हें विज्ञान ने सत्य प्रमाणित किया है। बिजली, रेडियम, इलेक्ट्रान, वायुयान आदि सभी कुछ वेदों के द्रष्टा ऋषियों को ज्ञात प्रतीत होता है।

२०. डाक्टर वी.जी. रैले ने वेदों में जीवविज्ञान
( Biology)
का विस्तृत वर्णन पाकर अपने बहुचर्चित ग्रन्थ ष्वम टमकपब टमकेंष में लिखा.
Our present anatomical knowlege of the nervous system tallies so accurately with the literal description of the world given in the Rigveda that a question arises in the mind whether the Vedas are really religious books or weather they are books on anatomy and physiology of the nervous system , without the thorough knowledge of which psycological and philosophical cannot be correctly made
अर्थात्‌ - हमारा आजकल का नाड़ी-संस्थान की रचना-सम्बन्धी ज्ञान ऋग्वेद के जगतू-विषयक वर्णनों से इतना मेल खाता है कि मन में प्रश्न उठता है कि क्या वेद वास्तव में धार्मिक ग्रन्थ हैं या वे नाड़ी संस्थान और शरीर विज्ञान के ग्रन्थ हैं, जिन्हें पूरी तरह जाने बिना मनोवैज्ञानिक तथा दार्शनिक विचारों को ठीक-ठीक नहीं समझा जा सकता?

२१. जनवरी १६७७ में दिल्ली में सम्पन्न सर्जिकल कॉलिजों के अर्न्तराष्ट्रीय महासंघ
(International Federation of Surgical Colleges)
के अध्यक्ष प्रोफेसर विटोल्ड रुडोविस्की ने प्लास्टिक सर्जरी का मूल ऋग्वेद में बताते हुए पथरी, फूला, ट्यूमर, हर्निया और आंख, नाक, कान के ऑपरेशनों और उनमें काम आने वाले लगभग एक सौ औज़ारों का उल्लेख किया था।

२२. शाहजहां का बड़ा पुत्र दाराशिकोह उपनिषदों पर इतना श्रद्धान्वित हो गया कि उसने लिखा है कि "जो आध्यात्मिक ज्ञान संस्कृत भाषा में है, वह अन्य किसी भाषा में नहीं। मैंने अरबी, फारसी आदि बहुत सी भाषायें पढ़ीए किन्तु न तो मेरे मन का सन्देह छूट और न मुझे आत्मिक आनन्द आया। जब मैंने संस्कृत भाषा का अध्ययन किया, तभी मैं संशयरहित हो पाया और मुझे वास्तविक आनन्द प्राप्त हुआ।"

२३. जर्मनी का प्रसिद्ध विद्वान शोपनहार उपनिषदों पर इतना मुग्ध हो गया कि उसने लिखा है -
In the world there is no study so beneficial and so elevating as that of the Upanishads. They are the product of the highest wisdom." (Augeburt der hochtem weisheit - Loc . Cit. II, page 428)". "It has been the solace of my life, it will remain the solace of my death." (Ibid, page 425). "It is destined sooner or later to become the faith of people" (Ibid I, page 59)"
अर्थात्‌ - संसार में ऐसा कोई अध्ययन नहीं है, जो उपनिषदों के समान उपयोगी तथा ऊँचा उठाने वाला हो। यह उच्चतम बुद्धि की उपज है। उसी से मुझे जीवन में शान्ति मिली है और उसी से मुझे मृत्यु के समीप भी शान्ति मिलेगी। एक-न-एक दिन उपनिषदों की शिक्षा ही मानव मात्र की शिक्षा का केन्द्र बनेगी।

२४. मैक्समूलर ने अपने ग्रन्थ "हम भारत से क्या सीखें" में इन शब्दों में वेद की महिमा का गायन किया - "यदि किसी को मानव जाति का अध्ययन करना हो, या आप चाहें तो यूं कह सकते हैं कि यदि किसी को आर्य-जीवन के विषय में अध्ययन करना हो, तो उसके लिए वैदिक साहित्य का अध्ययन ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण होगा। संसार का कोई भी साहित्य वैदिक साहित्य की तुलना में नहीं ठहर सकता।" (हम भारत से क्या सीखें, पृष्ठ १२४)
"लोगों ने वेद की महत्ता को कम करने में कोई कम प्रयत्न नहीं किया, परन्तु उनका महत्व आज भी वैसा ही है। आज भी धार्मिक, सामाजिक या दार्शनिक विवादों में वेद को ही अन्तिम प्रमाण माना जाता है।

२५. साहित्य समाज का दर्पण होता है और संस्कृति समाज की आत्मा। सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति वेदों के दिव्य ज्ञान से ओतप्रोत है। इस प्रकार निःसन्देह यह बात कही जा सकती है कि भारतीय संस्कृति विश्व में सर्वोपरि है।

२६. संसार के अन्य देशों की धरती को खनिज पदार्थों के भण्डार के कारण रत्नगर्भा कहा जाता है। किन्तु आर्यावर्त (वर्तमान भारत, नेपाल, भूटान, बर्मा, पाकिस्तान, बांग्लादेश तथा अफगानिस्तान की धरतीद्ध रत्नगर्भा ही नहीं महापुरुष गर्भा भी है, तभी तो इस पर योगिराज भगवान शिव एवं श्रीकृष्ण, मर्यादा पुरुषोत्तम राम, हनुमान जैसे ब्रह्मचारी वीर प्रकट होते रहे हैं। नारायण, वशिष्ठ आदि ऋषियों, मुनियों, योगियों, तपस्वियों तथा ब्रह्मज्ञानियों के नामों के उल्लेख से तो एक बहुत बड़ा ग्रन्थ ही बन जायेगा। एकमात्र मिथिला राजाओं की परम्परा में ही अनेकों जनक हुए हैं, जिन्होंने अपने ब्रह्मज्ञान की सुगन्धि से सम्पूर्ण पृथ्वी को पवित्र किया है।

२७. संसार के अन्य देशों में जहां सीमित क्षेत्र में ही शान्ति की बात की जाती है, वही यह वैदिक संस्कृति की महानतम्‌ उपलब्धि है जो केवल पृथ्वी पर ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में ही परम शान्ति का उद्घोष करती है।
द्यौः शान्तिः अन्तरिक्षम्‌ शान्तिरू पृथ्वी शान्तिः
आदि के कथनों का यही आशय है।

२८. एकमात्र भारतवर्ष ही वह भूमि है, जहां वर्ष में छः ऋतुओं का सुख है। यहां ध्रुव प्रदेश की तरह वर्ष भर बर्फ से ढकी रहने वाली बर्फीली धरती है, तो रेगिस्तान एवं समतल मैदान भी है। सागर की लहरें भी इसके भूभाग को निरन्तर धोती ही रहती है।

२९. संसार में उपलब्ध सभी विद्यायें बीज रूप से वेदों में विद्यमान हैं। इसलिये
"अनन्तो वै वेदाः"
का कथन सर्वत्र प्रसिद्ध है। जब सारा संसार वायुयान के विषय में मात्र कल्पना किया करता था, उस समय भारत में विमान बनाये जाते थे। पुष्पक विमान इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। वर्तमान समय में भारद्वाज मुनि द्वारा रचित
वृह्द विमान शास्त्र!
विमान रचना का प्रामाणिक ग्रन्थ है।

३०. वर्तमान विज्ञान अपने आणविक अनुसन्धानों पर गर्व करता है, किन्तु भारत में सांख्य एवं वैशेषिक दर्शन में इस विषय पर प्रचुर ज्ञान विद्यमान है। महाभारत में ऐसे कई प्रकार के आणविक अस्त्रों का वर्णन आया है। अश्वत्थामा के द्वारा प्रयोग किया गया ब्रह्मास्त्र इसी प्रकार का अस्त्र था। वर्तमान समय में गुरुकुल झज्झर के संग्रहालय में इसकी छोटी सी झलक देखी जा सकती है। हमारी गौरव-गाथा के ये स्वर्णिम पृष्ठ हैं, जो अंशमात्र ही यहां दर्शाये जा सके हैं। अपने गौरव की रक्षा करना ही हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। इसी में हमारे मानव जीवन की सार्थकता है।
इति